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कविता

डर पैदा करना

नरेश अग्रवाल

अनुक्रम अध्याय 1     आगे

केवल उगते या डूबते हुए सूर्य को ही
देखा जा सकता है नंगी आँखों से
फिर उसके बाद नहीं
और जानता हूँ
हाथी नहीं सुनेंगे
बात किन्हीं तलवारों की
ले जाया जा सकता है उन्हें दूर-दूर तक
सिर्फ सुई की नोक के सहारे ही,
इसलिए सोचता हूँ,
डर पैदा करना भी एक कला है।


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